भगवान बुद्ध , पाप शरीर से ही नही मन से भी होता है।
पाप शरीर से ही नही मन से भी होता है। :- बहुत समय पहले की बात है, भगवान बुद्ध के तीन शिष्य उनसे मिलने जा रहे थे। सफर बहुत लम्बा था, उन्हें चलते चलते सुबह से शाम होने को आयी थी। गर्मी भी बहुत थी, उन तीनो को बहुत तेज प्यास लगी थी। दूर दूर तक कही पानी नहीं था। वो चलते रहे अचानक उनमे से एक शिष्य को दूर एक नदी दिखाई दी। वो तीनो अपनी प्यास बुझाने के लिए नदी की ओर बढ़े। उन्होंने देखा कि नदी में एक स्त्री डूब रही है| बौद्ध धर्म में बौद्ध भिक्षुओं द्वारा किसी भी स्त्री को स्पर्श करना वर्जित माना जाता था। ऐसे में अब क्या हो सकता था? उनमे से दो शिष्यओ ने कहा, हमें अपने धर्म का पालन करना चाहिये। इस एक स्त्री को बचाने के लिए हम अपने मर्यादा को त्याग नहीं सकते। अगर यह मर जाएगी तो कुछ नहीं होगा, परन्तु अगर हमने इसे बचाने की कोशिश की तो हमारी वर्षों की तपस्या समाप्त हो जाएगी। हमें अपनी प्यास बुझाकर यहाँ से चलाना चाहिये। उनमे से तीसरा शिष्य दयावान था। उसने कहा मेरा धर्म क्या कहता है यह मुझे पता है, परन्तु मेरा मन यह नहीं कहता कि कोई तुम्हारे सामने मरता रहे और तुम उसे खड़े होकर देखते रहो। ऐसा कहकर वह उस स्त्री को बचाने के लिए नदी में कूद गया। कुछ देर प्रयास करने के पश्चात उसने डूबती हुई स्त्री को पकड़ लिया, और अपने कन्धे पर सहारा देकर उसे बाहर निकाला। दोनों शिष्यों ने उसका बहुत मजाक बनाया, और कहाँ कि अब तुम्हारी धर्म नष्ट हो चुका है। अब तुम हमारे साथ रहने लायक नहीं रहे। तुम हमसे दूरी बनाकर चलो नहीं तो हमारा धर्म भी तुमको स्पर्श करने से नष्ट हो जायेगा। उसे उनकी बात सुनकर बहुत दुःख हुआ परन्तु उन्होंने उसे कुछ नहीं बोला।
कुछ दूर चलने के पश्चात तीनो भगवान बुद्ध के समीप पहुँच गये और दोनों शिष्यों ने मार्ग में घटित सारी बात बतायी। उन्होंने कहा, “हमने इसे रोकने के बहुत प्रयत्न किये परन्तु यह नहीं माना। इसने उस स्त्री को स्पर्श करके घोर पाप किया है। इसको उचित दण्ड मिलना चाहिए “। भगवान बुद्ध ने उन दोनों की बात बड़े ही ध्यान से सुनी और उनको अपने पास बुलाकर पूछा -” इस भिक्षु द्वारा उस स्त्री को अपने कंधे का सहारा देकर बाहर आने में कितना समय लगा “? दोनों ने एक साथ जबाब दिया-” कम से कम उसको बाहर तक लाने में इसको पच्चीच मिनट का समय लगा होगा “। भगवान बुद्ध ने फिर पूछा -” इस घटना के पश्चात तुमको यहाँ तक आने में कितना समय लगा “। दोनों ने फिर से जबाब दिया -” यहाँ तक आने में हमें कम से कम आठ घण्टे लग गए होगे “। भगवान बुद्ध ने मुस्कुराते हुए उन दोनों से कहाँ -” इसने उस स्त्री का जीवन बचाने के लिए केवल पच्चीच मिनट अपने कंधे पर सहारा दिया। जो एक नेक काम है और एक दयावान इन्सान ही कर सकता है। तुम दोनों तो पिछले आठ घंटो से उस स्त्री को अपने मन में बसाये बैठे हो। वह भी इसलिए कि यहाँ आकर मुझ से इसकी शिकायत कर सको। जो की एक बुरा काम है और एक निर्दयी इन्सान ही कर सकता है।
तुम दोनों ही बताओ मुझे कि तुममे बड़ा पापी कौन है।
दोनों शिष्य निरुत्तर हो गए। वो समझ चुके थे, कि पाप शरीर से ही नही मन से भी होता है।